May 1, 2025

जखनी के समाजसेवी उमाशंकर पांडेय बताते हैं कि हमने कुछ नया काम नहीं किया बल्कि पुराने कामों को फिर से जीवित किया. उनका कहना है कि बुंदेलखंड में जब हरबोला किसानों ने काम किया तो उन्होंने खेत पर मेड़ बनाई, हम ये बात जानते थे कि अगर खेत में पानी रुकेगा तो वो मेड़ बनाकर रुकेगा. जिस खेत पर मेड़ होगी, मेड़ पर पेड़ होगा, पानी वहीं रुकेगा, पानी रुकेगा तो उसमें बासमती आसानी से उगेगा, लोगों की आय भी होगी और भूजल स्तर भी बढ़ेगा.

आज जखनी गांव में गरीब से गरीब किसान 50 हजार की धान पैदा करता है, जिसके पास कभी साहूकार का कर्ज चुकाने के पैसे नहीं होते थे. आज बैंक में उसके पास खुद का एक लाख रुपया पड़ा हुआ है. यहां तीन बीघे खेत वाले किसान के पास भी ट्रैक्टर है, हार्वेस्टर मशीन पूरे बांदा जिले में यहीं के किसान मामून खां के पास ही है.

जिस बुंदेलखंड की चर्चा पलायन, भुखमरी, गरीबी, अशिक्षा, जल संकट जैसी विभिन्न समस्याओं के लिए साल भर होती रहे पीने का पानी मालगाड़ी द्वारा दिल्ली से बुंदेलखंड लाया जाए। उसी बुंदेलखंड के जनपद बांदा के ग्राम जखनी के जल संरक्षण से 15 वर्ष के सामूहिक परंपरागत प्रयास ने देश के सामने गांव में पानी और पलायन रोककर देश के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है।

सरकार से कोई अनुदान नहीं लिया गया 

जल संरक्षण के इस सामूहिक प्रयास में ना तो सरकार से कोई अनुदान लिया गया और ना ही नई मशीन तकनीक का इस्तेमाल किया गया स्वयं गांव के किसानों नौजवानों बेरोजगारों ने फावड़ा उठाया, समय दिया, श्रमदान किया, मेड़ बंदी की, गांव में जल रोका, गांव के पानी को जगाया, गांव को पानीदार बनाया। अपने गांव को देश का पहला जल ग्राम बनाया देश के 1050 जल ग्रामों को जन्म देने की प्रेरणा दी। जखनी गांव के किसानों के इस परंपरागत जल संरक्षण विधि को समझने के लिए इजराइल सरकार की जल विशेषज्ञ, टीम वर्ल्ड वाटर रिसोर्स ग्रुप 2030 कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बांदा, केंद्रीय भूजल बोर्ड उत्तर प्रदेश, जल संसाधन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जखनी के जल संरक्षण के सामूहिक प्रयास पानी और पलायन रोकने के तरीकों पर कई वर्षों से चर्चा कर रहे हैं शोध कर रहे हैं अनुकरण कर रहे हैं जखनी मॉडल को देश में लागू कर रहे हैं। भले ही गांव के इन किसानों के पास औपचारिक रूप से कोई डिग्री ना हो शिक्षा ना हो लेकिन उनका यह सूखे बुंदेलखंड में जल संरक्षण का तरीका खेत के ऊपर मेड मेड के ऊपर पेड़ किसी विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता से अधिक शिक्षित होने का प्रमाण है।