
तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे कलाम 25 अप्रैल 2005 को विज्ञान भवन में सैकड़ों स्वैच्छिक प्रतिनिधियों को को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत के गांव में जल संकट अधिक है। हमें गांव को जल ग्राम के रूप में विकसित करना होगा। परंपरागत जल वैज्ञानिक अनुपम मिश्र, पद्म विभूषण निर्मला देशपांडे, प्रसिद्ध समाजसेवी मोहन धारिया, अन्ना हजारे, जैसे प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।
तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भी थे कलाम जी के सुझाव का संदेश का पालन संकल्प उस समय राष्ट्रीय कार्यशाला में मौजूद सर्वोदय कार्यकर्ता उमाशंकर पांडे के मन मस्तिष्क में 3 दिन तक चली कार्यशाला में बैठ गया। अनुपम मिश्र जिन्होंने आज भी खरे हैं तालाब जैसा जमीनी जल ग्रंथ लिखा है, की सहमति और परामर्श से जखनी को जल ग्राम बनाने की सहमति मंच पर दे दी की सूखे बुंदेलखंड के जखनी गांव को देश का प्रथम जल ग्राम बगैर किसी सरकारी सहायता के परंपरागत तरीके से बनाएंगे भले ही इसके लिए हमें 50 वर्ष क्यों ना लगे साधना में लग्न में निष्ठा हो तो साधन आ ही जाते हैं। 15 साल संघर्ष किया मेहनत की कष्ट सहा एक और जहां नकारात्मक लोगों के ताने सहे, अपमान सहा, वहीं दूसरी ओर अपनी धुन में अपने गांव को जल ग्राम बनाने के लिए जल संरक्षण की दिशा में काम करते रहे ना अपमान से डरे, न सम्मान लिया। दिल्ली की सरकारों के साथ पत्र व्यवहार किया योजना बताएं कई बार नहीं सुना गया लेकिन जनहित के प्रयास करती रही है। कोई ना कोई आपकी बात सुनेगा परिणाम से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार आई तत्कालीन केंद्रीय जल मंत्री, जल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को जलग्राम का सुझाव 2014 से 2016 तक समझाने के बाद मीटिंग हुई फाइलें दौड़ी अंतत: सरकार को जल क्रांति अभियान के अंतर्गत जल ग्राम जखनी मॉडल को तथाकथित जल सेवियो एनजीओ के नाम पर बड़ा धन देने वाले एसी वाले समाजसेवियों के विरोध के बावजूद मान्यता मिली और संपूर्ण भारत के प्रत्येक जिले में 2 जल ग्राम चुने गए वर्तमान में 1050 जल ग्राम जल क्रांति अभियान के अंतर्गत जल मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है। जखनी से निकली छोटी सी मशाल देश में जल ग्राम को जन्म देती है थे धैर्य हो संकल्प लगन हो तो संघर्ष की भावना हो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
जखनी गांव के साथ आसपास के गांव के किसानों ने जखनी से प्रेरणा लेकर जल संरक्षण के लिए अपने संसाधन से हजारों बीघे जमीन में कर डाली मेड बंदी जखनी गांव में मेड़बंदी से जल संरक्षण व खेती के फायदे देख आस-पास के गांव घुरौडा के किसानों ने परंपरागत तरीके से अपने श्रम अपने संसाधन अपने पैसे से 500 बीघे जमीन में तथा साहेबा गांव के किसानों ने 400 बीघा जमीन में, जमरेही गांव के किसानों ने 800 बीघे में तथा बंसडाखुर्दबुजुर्ग के किसानों ने 400 सौ बीघे जमीन में मेड़बंदी 5 वर्ष पहले शुरू कर दी सर्वप्रथम आज गांव के कुओं तालाबों का जलस्तर जखनी की तरह ऊपर आ रहा है। गांव पलायन रोकने में कामयाब रहे इन गांव में भी बासमती धान, सब्जियां, दूध उत्पादन हो रहा है जखनी से 5 गांव किसान पहले प्रेरणा लिए अब 50 गांव के सैकड़ों किसानों ने हजारों बीघा जमीन में अपने संसाधन से मेड़बंदी कर दी है और उसके परिणाम भी देखे जा सकते हैं।