
– उमाशंकर पांडेय
तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेकर लड़े जाने की भविष्यवाणी अनेक लोग कर चुके हैं । भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने कहा था कि तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेकर होने की संभावना है पर हम प्रयास करें कि वह भारत में ना हो । बेवजह पानी बहाते लोगों को यह जानना और समझना आवश्यक है कि यह भविष्यवाणी लोगों ने यूं ही, बिना तथ्यों के नहीं कर दी अपितु इसके पीछे वो आंकडे हैं जो सभी को चौंका देने वाले हैं ।
नदियों को तप से धरा पर लाया गया l नदियाँ, तालाब, कुँए, बावड़ियाँ और जल श्रोत पूजनीय और जन-समाज की आस्था और सहभागिता से जीवंत थे लेकिन आज हमारा जनमानस जल श्रोतों से दूर है, उनके प्रति उदासीन है, उन्हें प्रदूषित कर रहा है l जीवनदायी जल को व्यर्थ में बहाता लापरवाह मनुष्य कल पीने वाले जल की समाप्ति की भयावहता से अनभिज्ञ है । मनुष्य यदि आज जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं हुआ तो निश्चित ही आने वाले समय में बूंद-बूंद पानी के लिए तरसेगा ।
सनातन वैदिक भारतीय संस्कृति के अनेकों ग्रंथों में जल की विभीषिका का वर्णन मिलता है । सतयुग, त्रेता, द्वापर की घटनाएं तो प्रमाण हैं परन्तु वर्तमान कलियुग में प्रत्यक्ष सुनने और देखने के बाद प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । दुनियाभर के अलावा भारत के अनेक क्षेत्रों में प्रतिवर्ष पीने योग्य जल के बिना अकाल-दुर्भिक्ष से तो लोग अभिशप्त हैं ही मृत्यु के भय से अपनी जन्मभूमि से पलायन करने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं । जल के बिना सामाजिक और आर्थिक ताना-बाना भी तब टूटता नजर आता है । गड़बड़ी कहां है जानना अति आवश्यक है । मानवता के हित में निशुल्क पानी पिलाने वाले भारत में नदिया बेचना जल का बाजारीकरण जल समस्या का समाधान नहीं है l बोतल बंद पानी 15 रूपये से 150 रूपये बोतल तक बिक रहा है आने वाले समय में जिसका कारोबार 160 बिलियन को छू जाने वाला है l गरीब जल कहाँ से पिएगा, किसान कहाँ से खेत को पानी देगा ? ये बड़े ज्वलंत प्रश्न हैं l बांधो में नदियों को बाँध कर जल को अपने अधीन करने का कार्य हो रहा है भारत का किसान पानी के बिना खेत छोड़ देगा, गाँव छोड़ देगा या फिर पानी को गहरे बोर करके प्राप्त करेगा जिससे खेती-किसानी महंगी तो होगी ही साथ ही भूमि का जल स्तर निरंतर गिरता चला जाएगा और बोर के महंगे खर्चे के कारण जो लम्बे समय तक चल भी नहीं पायेगा । यही नही कम भूमि का छोटा किसान पानी की कमी और महंगी, खर्चीली खेती के कारण स्वत: ही समाप्त हो जाएगा और अन्न देने वाला खुद ही दाने-दाने का मोहताज हो जाएगा ।
बुंदेलखंड ऐसा क्षेत्र है जहाँ सूखे के दौरान सरकार ने मालगाड़ी के जरिये पीने का पानी भिजवाया । वो ऐसा स्थान जहां जल संसाधनों की प्रचुरता है, छोटी-बडी लगभग 35 नदियां हैं । जिनमें पांच बड़ी और 30 प्रदेश स्तर की हैं । छोटे-बड़े लगभग 125 बांध हैं । 27000 तालाब विद्यमान हैं । 52000 कुएं, 200 नाले, 150 बावडियां और चंदेल, बुंदेल राजाओं द्वारा स्थापित लगभग 51 परंपरागत और प्राकृतिक जल संसाधन और अनुसंधान केंद्र हैं । एशिया की सबसे बड़ी पेयजल योजना “पाठा” चित्रकूट तुरंत पेयजल योजना राजीव गांधी पेयजल योजना नल से जल योजना अटल भूजल योजना टंकी पानी पेयजल योजना यूनिसेफ पेयजल योजना बुंदेलखंड में ही है । केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जल की तमाम योजनाओं में अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद भी बुंदेलखंड आज प्यासा क्यों है…? मालगाड़ी से पानी भेजने की नौबत क्यों आई…? क्या कारण है कि सरकारों के अनेकों प्रयासों के बावजूद भी समस्या ज्यों की त्यों बनी रही । सरकारों ने अपना काम किया लेकिन जिनके लिए काम किया उस समाज ने उन कामों के प्रति क्या जिम्मेदारी दिखाई..? उन कार्यों को कैसे स्वीकार किया, सरकार के कार्यों में उन्होंने क्या सहयोग किया..? क्या केवल भोगी बनकर उपभोग किया और उपलब्ध कराए गए संसाधनों का दोहन करके सरकारों के भरोसे छोड़ दिया या दिए गए संसाधनों से समस्या का स्थाई समाधान निकाल कर गांव, प्रदेश और देश की उन्नति में सहायक बने अथवा नहीं..? यदि ऐसा होता तो सरकार को पीने का पानी मालगाड़ी से ना भेजना पड़ता । बुंदेलखंड पानी के लिए आत्मनिर्भर होता, स्वाबलंबी होता । लेकिन सरकार की अनेकों योजनाओं के चलते भी बुंदेलखंड का किसान आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है । आत्महत्या भी करता है गांव से पलायन हो रहा है कृषि और रोजगार के अभाव में कर्ज़ के सहारे भूखे लोग जिन्दा हैं, सुखी रोटी खा कर पेट भर रहे हैं । इसी बुंदेलखंड में इस समस्या के बाद भी बगैर किसी सरकारी अनुदान सहायता के समुदाय के कुछ जागरूक जनों ने एक मिट्टी का दीपक जलाया बुंदेलखंड के बांदा जिले के जखनी गांव के लोगों ने अपना भरोसा जगाया । अपनी परंपरागत खेती-किसानी का सहारा लिया और बिना किसी सरकारी और सहायता, संसाधन के गांव के बच्चे, बुजुर्ग, जवान स्त्री-पुरुष सभी ने गांव के जल देव को जगाया । दृढ संकल्पित जल योद्धा उमाशंकर के नेतृत्व मे सारा गांव ने अपने लिए नहीं, अपने गांव के लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए सामुदायिक आधार पर फावडे, कस्सी, डलिया, टोकरा लेकर उमड पडा और परंपरागत तरीके से, बिना किसी आधुनिक मशीनी तकनीकी के पानी रोकने का बंदोबस्त किया । सबको एक ही चिंता कि पानी बनाया नहीं जा सकता, उगाया नहीं जा सकता लेकिन प्रकृति द्वारा दिए पानी को रोककर पानी की फसल को बोया जा सकता हैं । पूरे गांव ने खेतों की मेड़बंदी की और पानी की फसल बोने का यही मन्त्र सिद्ध किया ।… खेत पर मेड़ मेड़ पर पेड़।
मेडबंदी के बाद अब बारी थी कि जल की निरंतर प्राप्ति के लिए पानी की फसल कैसे बोई जाए, कैसे पानी की खेती की जाये । जिसके लिए उमाशंकर ने समुदाय के साथ गांव के पानी का मैनेजमेंट किया, गांव के तालाबों को पुनर्जीवित कराया और खेतों की मेड़ से निकलने वाले अतिरिक्त पानी और गांव के बचे पानी का रुख तालाबों की ओर मोड़ दिया । यानी खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में । गजब की सोच । पहली बारिश होते ही उंची मेड के कारण जमीन ने जी भर कर पानी पिया । खेतों का पेट भरने के बाद बाहर निकलते पानी ने तालाबों का रुख किया । तालाब पानी से लबालब भरने लगे । एक तालाब, दो तालाब गाँव के सारे छ: तालाब पानी से लबालब हो गए । यही नहीं तालाबों के भरने से गांव के 30 कुंए भी अपना यौवन दिखाने लगे और गांव के कुओं का जलस्तर भी 15 से 20 फुट पर पहुंच गया । काम यहीं नहीं रुका गांव वालों ने मेड पर पेड़ लगाना कर शुरु दिया । लहलहाती फसल के बीच खड़े वृक्ष मानों कह रहे हों कि बादलों से पानी लाने का काम हमारा और उसे रोकने का काम तुम्हारा ।
सूखे बुंदेलखंड में20 वर्षों की लगातार मेहनत रंग लाई और जखनी के किसानों ने गत वर्ष 21000 हजार कुंटल बासमती धान और 13000 हजार कुंटल गेहूं का उत्पादन किया । गेहूं, धान, चना, तिलहन, दलहन के साथ-साथ सब्जी, दूध और मछली पालन से जखनी के किसान समृद्ध और साधन संपन्न होने लगे । यहां तक कि 4 बीघे के छोटे से छोटे किसान के पास भी आज अपना ट्रैक्टर है और वह भी बिना किसी कर्ज के । 20 बरस पहले जखनी गांव बांदा जिले का सबसे गरीब गांव था एक भी नौजवान गांव में नहीं था 99% नौजवान जो पलायन कर गए थे वापस आ गए हैं अपनी परंपरागत खेती करने लगे हैं जखनी गांव प्रदेश का कृषि में सबसे संपन्न गांव माना जाता है सामुदायिक आधार पर चला यह सिलसिला यहीं नहीं रुका गल्ला मंडियों में जखनी के किसानों के धान को अधिक मूल्य और सम्मान मिला तो सब्जी मंडी में भिंडी, बेंगन, प्याज, टमाटर की सर्वाधिक मांग होने लगी इस वर्ष 2000 कुंटल प्याज पैदा की है जखनी के किसानों ने जिससे आसपास के लगभग 50 गांवों के सैकड़ों किसानों ने भी जखनी की तरह खेती करने का संकल्प लिया और उन्होंने हजारों बीघा जमीन को अपने संसाधनों से मेडबंद कर दी और यहीं से जलग्राम जखनी की जलक्रांति सूखे बुंदेलखंड में फैलने लगी । गांव से पलायन कर गए नौजवान अपने खेतों में बिना मजदूरों के स्वयं काम करने लगे । तालाबों में मछली पालन, दुग्ध उत्पादन , कृषि आधारित रोजगारों से गांव खुशहाल होने के साथ-साथ स्वावलंबी बनने लगा ।
बिना किसी सरकारी सहयोग के सामुदायिक आधार पर आस-पास के गांवों में फैलती इस जलक्रांति की तपिस जब सरकार तक पहुंची तो किसानों के लिए चिंतित माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के चिंतन को जखनी की जलक्रांति ने गति दी उन्होंने तुरंत इस पर पहल की । जलशक्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने जखनी का रुख किया । भारत के जल शक्ति जल सचिव यू. पी. सिंह खुद जखनी के आकर किसानों से मिले, उनके कार्य और परिणाम को देखा सरकार के जलक्रांति अभियान के अंतर्गत ग्राम जखनी को संपूर्ण भारत के लिए जलग्राम की मान्यता मिली । देश के प्रत्येक जिले में जखनी माडल पर 2 गांव चुने गए जलक्रांति अभियान के अंतर्गत जलशक्ति मंत्रालय ने देश के 1050 गांवों की सूची जो मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है ।
बिना किसी सरकारी सहायता, बिना किसी आधुनिक मशीनी तकनीकी के ऋषि-मुनि प्रद्त्त खेती-किसानी के परंपरागत तरीकों से केवल सामुदायिक आधार पर उमाशंकर के गांव जखनी ने सिद्ध कर दिया कि जो बुंदेलखंड पानी के लिए तरस रहा हूं उस बुंदेलखंड में 10 लाख कुंटल से अधिक बासमती धान पैदा हुआ है मेड़बंदी विधि से बगैर प्रचार-प्रसार के मेड़बंदी विधि जल संरक्षण की पुरानी विधि है पूरे देश में यह वर्षा जल संरक्षण विधि जखनी के नाम से जानी जाती है वातानुकूलित कमरों में बैठने से जल की समस्या का समाधान नहीं हो सकता इसके लिए जनमानस को स्वयं ही जागना होगा, अपने जलाश्य की सुध लेनी होगी और जलाश्य पर बैठकर ही जल का हल निकालना होगा । जखनी के सामुदायिक प्रयास से जल संरक्षण की चर्चा विश्व स्तर पर होने लगी है । जल संरक्षण की इस तकनीक को समझने, जानने के लिए इजरायल सरकार की विशेषज्ञ समिति, 2030 वर्ल्ड वाटर रिसोर्स ग्रुप, कृषि प्राद्योगिक विश्वविद्यालय बांदा, केंद्रीय तथा राज्य भूजल बोर्ड उत्तर प्रदेश, जल संसाधन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जल वैज्ञानिक छात्र लगातार जखनी पहुंच रहे हैं, शोध कर रहे हैं उन किसानों के कार्य पर जिनके पास कोई डिग्री नहीं, कोई सर्टिफिकेट नहीं यहां तक की शिक्षा का कोई आधारभूत ज्ञान नहीं । लेकिन महाकवि घाघ को अपना गुरु मानते हैं।

15 वर्ष पहले पूर्व राष्ट्रपति स्व. श्री अब्दुल कलाम आजाद जी की प्रेरणा और आह्वान से उमाशंकर पांडे ने अपने गांव को जलग्राम बनाने का संकल्प लिया था । तब साधारण से दिखने वाले उमाशंकर के संकल्प से लोग अचंभित थे और शशंकित भी कि बिना किसी संसाधन और सरकारी सहायता के गाँव का सीदा-सादा किसान कैसे सूखाग्रस्त गाँव को पानीदार बनाएगा, कैसे राष्ट्रपति जी के जलग्राम स्वप्न को पूरा करेगा, कैसे अपने गाँव को पानी की समस्या से उबारेगा । कोई यह सोच भी नहीं सकता था की आने वाले समय में अनेकों गांव जखनी की तर्ज पर जल संरक्षण के परंपरागत तरीके प्रयोग में ला रहे होंगे । परंपरागत जल वैज्ञानिक अनुपम मिश्र से मार्गदर्शन और भूजल विशेषज्ञ अविनाश मिश्र की परंपरागत समुदायक तकनीक पदम् विभूषण स्व. दीदी निर्मला देशपांडे से स्वावलंबन का मंत्र लेकर उमाशंकर पांडे ने जखनी को जलग्राम बनाकर वह संकल्प पूरा किया । जखनी के किसानों ने सिद्ध कर दिया कि जल हमारे अपने पुरुषार्थ से ही बच पायेगा । बिना किसी सरकारी सहायता के सामुदायिक आधार पर समाज को फिर से आगे आकर आस्था और संकल्प के साथ अपनी ऋषि आधारित परम्परागत खेती-किसानी से ही जल को बचाना होगा, गाँव को जल स्वावलंबी बनाना होगा ।

जल ग्राम जखनी के इन योद्धाओं ने ना तो कोई सरकार से पुरस्कार के लिए आवेदन किया नाही सरकारी अनुदान के लिए आवेदन किया नीति आयोग ने देश की सबसे महत्वपूर्ण वाटर मैनेजमेंट रिपोर्ट 2019 में जखनी गांव को आदर्श गांव माना है जिलाधिकारी बांदा ने 470 ग्राम पंचायतों में जखनी मॉडल पर भू जल संरक्षण के आदेश दिए हैं जल मंत्रालय भारत सरकार में 2015 में जल ग्राम विधि को उपयुक्त माना 2016 में 10 50 जल ग्राम देश में चिन्हित किए जब गांव समाज खड़ा हुआ तब सरकार खड़ी हुई सरकार सुनती है धैर्य चाहिए सच्चे संकल्प ने जखनी को सिद्धि प्रसिद्धि दोनों दिलाई हमें बगैरसरकार की सहायता के समुदाय के आधार पर परंपरागत तरीके से भूजल संरक्षण करके जखनी ने जो उदाहरण दिया जखनी की इस जल ग्राम क्रांति खेत पर मेड मेड पर पेड़ को पूरे भारत के गांव को स्वीकारना होगा जो जल के लिए होने वाले किसी भी सामाजिक संभावित विश्वयुद्ध को टालने का सहज परंपरागत सामुदायिक स्थाई उपाय है । जखनी जैसे समुदायक परंपरा गत प्रयासों को पानी किसानी पलायन रोकने के लिए लागू करना होगा पोत्साहित करना होगा पैसे से पानी नहीं बचेगा भू जल संरक्षण समुदायिक विषय है वर्षा बूंदे जहां पर गिरे वहीं पर पकड़े जैसे जखनी ने पकड़ा अपने गांव को पानीदार बनाया जल शक्ति मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जखनी की तर्ज पर सूखा प्रभावित हरगांव को जल ग्राम बनाने की योजना बनाई है वर्षा जल भू जल संरक्षण विधि को आगे बढ़ाया जा रहा है देश के प्रधानों को मेड़बंदी माध्यम से जल संरक्षण के लिए प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने पत्र लिखा है