

- उमाशंकर पांडेय
कहानी पढ़ें फिर साझा करेंआज विश्व पृथ्वी दिवस भौतिक विकास ने सैकड़ों वर्ष पुराने लाखों पेड़ काटे पेड़ों की लाश देखकर शरीर कांप उठता है बुंदेलखंड में झांसी से बाया खजुराहो चित्रकूट से इलाहाबाद नरैनी से कालिंजर सतना लाखों पेड़, सैकड़ों वर्ष पुराने कटे पड़े, हजारों पेड़ों की छाती पर काटने का नंबर है। जिसके लिए पेड़ काटे गए थे बे रोड भी अधूरे पड़े हैं पूरी कहानी पढ़ें क्या रोक सकते हैं?
पेड़ हमारे देवता है, इनमें संसार का सुख समाहित है पेड़ परोपकारी हैं। एक पेड़ 10 पुत्र समान वृक्ष वर्षा लाते हैं पेड़ों में हमारे पूर्वजों की आत्मा समाहित है, ऐसा वेद धर्म ग्रंथ कहते हैं। मैंने अभी हाल ही में बांदा से सतना झांसी से खजुराहो इलाहाबाद बांदा से कालिंजर यात्रा की रोड बनाने के नाम पर सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ों के साथ जो विकृत मानसिकता के साथ महुआ, आम, पीपल, बरगद जामुन, शीशम के पेड़ों को हलाल किया गया है, पुराने पेड़ों की लाश देखकर शरीर कांप उठता है। हमारे पर्यावरण प्रेमी जिन्हें पेड़ों से प्रकृति से प्रेम है उनमें चित्रकूट के वैद्य डॉक्टर सचिन उपाध्याय खजुराहो डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष सुधीर शर्मा अजीत दुर्ग कालिंजर के अरविंद भाई महोबा के भाई राजीव तिवारी बांदा के भाई अरुण निगम दीपक शुक्ला जी के विचारों को संक्षिप्त में सुने उनकी क्या वृथा है पेड़ों को बचाने के लिए हृदय से निस्वार्थ भाव से लगे बगैर प्रचार-प्रसार के मेरे साथ वर्षों से
जिस चित्रकूट का वर्णन गोस्वामी जी महाराज ने बताया कि प्रभु श्री राम को वन का राजा बताया वहां के हजारो ऋषि-मुनियों तीर्थ यात्रियों की वन गमन के दौरान स्वयं भगवान राम माता सीता भाई लक्ष्मण की शरण स्थली के पेड़ों को निर्दयता के साथ काटा गया है देख नहीं सकते। पोद्दार इंटर कॉलेज के सामने का शमी वृक्ष सैकड़ों वर्ष पुराना, पीपल का वृक्ष सैकड़ों वर्ष पुराना, चित्रकूट से इलाहाबाद मार्ग पर बसे गांव के हजारों पुराने पेड़ों की लाशें मिलेगी। इन पेड़ों के नीचे किसको-किसको आसरा मिला होगा। स्वयं कल्पना कीजिए हम 100- 200 साल पुराना पेड़ नहीं बना सकते, विश्व प्रसिद्ध कालिंजर नरैनी से कालिंजर जाते समय दो हजार पेड़ काटने का पेडो की छाती पर नंबर लिख दिए गए हैं पिछले वर्ष इन पेड़ों पर नंबर लिखे गए थे इस वर्ष कट गए अच्छा विकास है, इसे विकास कहते हैं। दूसरे देशों में पेड़ काटे नहीं उखाड़कर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिए जाते हैं। यही बहुत बड़ा बेईमानों का रैकेट है, लकड़ी काटने के नाम पर पुरानी लकड़ी को बेचने के नाम पर, वह लकड़ी कहां जाती है उसका मूल्य क्या होता है शायद किसी को नहीं मालूम, जिस विभाग जिम्मेदार हैं वह चुप हैं। जब करोड़ों रुपए की जेसीबी आ सकती है पेड़ों को उखाड़ने के लिए तो पेड शिफ्ट करने के लिए मशीन क्यों नहीं मंगाई जा रही। वृक्ष हमें समुद्र मंथन में मिला पृथ्वी सूत्र में लिखा है वृक्ष बरसा लाते हैं, ऋषि मुनि पुरखे वृक्षों की पूजा करते हैं
, पीपल को देव वृक्ष माना है, पीपल की परिक्रमा से पाप मिटते हैं। भगवान बुद्ध ने पूरा ज्ञान अद्भुत शक्ति प्राप्त की वास्तविकता यह है कि पेड़ पौधों की पूजा अर्चना वंदना एवं प्रार्थना के पीछे कर्मकांड नहीं अपितु इनके पीछे मनो उपयोगी वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों की जितनी महिमा गरिमा का उल्लेख किया है संभवतः किसी और देश में नहीं। प्रत्येक पेड़ पौधे मैं अनुपम शक्ति है जिसका उल्लेख वेद उपनिषद,पुराणों, शास्त्रों लोक विश्वासों परंपराओं में समाहित है वृक्षों को देवता मानकर उनकी पूजा उपासना की जाती है।

जो नर नारी वृक्ष लगा वहीं,
शो चारों धाम फल पावही।
छित जल पावक गगन समीरा यह शरीर पृथ्वी अग्नि आकाश वायु जल से मिलकर बना है। मत्स्य पुराण में पेड़ों को पुत्र से बड़ा माना आजादी के समय भारत की संपूर्ण भूभाग पर 20% पेड़ थे। वर्तमान में जिस तरह फर्जी आंकड़ों पर वृक्षारोपण हो रहा है करोड़ों पेड़ प्रतिवर्ष लगाए जाते हैं कागज पर उस आधार पर 4 प्रतिशत है अगर पेड़ प्रतिवर्ष लगाए जाते हैं वह पेड़ है कहां, 70 सालों में इतनी पेड़ लग गए हैं जितना शायद भारत में पृथ्वी का भूभाग नहीं होगा मुझे चित्रकूट मंडल में तो हजारों नहीं दिखे भले ही करोड़ों लगाए गए हैं। मुंबई में 3000 वर्ष पुराना पेड़ है पीपल के पेड़ पर 1987 में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया। कनाडा अमेरिका अफ्रीका में पेड़ क्यों है, ऑस्ट्रेलिया के डीटी कबीले के लोग पेडो को अपने पूर्वजों की आत्मा रूपांतरण मानते हैं। फिलीपीन दीप बासी पेडो में अपने पूर्वजों का वास मानते हैं। पेड़ों की पुरोहितों से पूजा करवाते हैं, पेड़ों के आस पास शोर करना आग जलाना मना हमारे इन पेड़ों का दिल कितना बड़ा है जो भी व्यक्ति इन पेड़ों के पास आहार आश्रय की कामना लेकर आता है उसे फल, फूल,पत्ते, छल, छाया ईंधन औषधि देकर कल्याण करते हैं। भगवान महावीर मानते हैं कि पेड़ों में जीव है जियो और जीने दो वृक्ष तो कुल्हाड़ी मारने वाले को भी छाया देते हैं, श्रीमद्भागवद गीता, भविष्य पुराण मैं वृक्ष के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। 100फलदार वृक्ष लगाने वालों को किसी अनुष्ठान की जरूरत नहीं है, पेड़ बोलते हैं बातें करते हैं, आशीर्वाद देते हैं मनोकामना पूरी करते हैं जिसने पेड़ों को कष्ट दिया उसका नाश करते हैं। वह व्यक्ति अपने जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता ना ही उसकी संतान ऐसा शास्त्रों में लिखा है
वायू पानी मिट्टी ध्वनि पेड़ पौधे वनस्पति पहाड़ जीव जंतु सूर्य जो एक संपूर्ण व्यवस्था बनाते हैं उसे हम पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण का मानव जीवन में विशेष महत्व है उसका अपना प्रभाव होता है आज सभी नदियों, तालाबों, जलाशयों का जल प्रदूषित हो गया है क्यों पेड़ नहीं, हृदय रोग रक्तचाप, मानसिक, बीमारी, अस्थमा, तनाव यह सब पेड़ ना होने कारण पेड़ों की छाया इंसान को कभी अकेला होने का एहसास नहीं कराती इंसान को जीने के लिए हवा चाहिए, पानी चाहिए, उसके लिए पेड़ चाहिए। वेदों में कहां गया है की 10 कूप के बराबर एक बावड़ी होती है, 10 बावड़ी के बराबर एक तालाब होता है 10 तालाब के बराबर एक पुत्र होता है, 10 पुत्रों के बराबर एक पेड़ वृक्ष है। महाभारत एवं पुराण में वृक्ष को धर्मपुत्र माना गया है एक व्यक्ति एक दिन में 20000 बार सांस लेता है, खराब प्रदूषण के कारण करोड मनुष्य अस्थमा से पीड़ित है, आयुर्वेद में हर पेड़ औषधि है आज दुनिया का कोई कोना नहीं है जहां पृथ्वी खुश हो जीव जंतु मिट्टी हवा सब प्रदूषित है। पृथ्वी इतनी सामर्थ है कि वह हर मनुष्य की जरूरतें पूरा कर सकती है, लेकिन मनुष्य की लालच नहीं।
1970 में पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत हुई छोटी सी मुहीम ने असर किया आज 95 से अधिक देश पृथ्वी दिवस मना रहे हैं या दिवस पहले 21 मार्च को मनाया जाता था 21 मार्च को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पृथ्वी दिवस घोषित किया गया था। अब 22 अप्रैल को मनाया जाता है, ऋग्वेद में जल माताएं सृष्टि को जन्म देती हैं। वेदों में पेड़ काटने जल को, दूषित करने वाले को कड़ी सजा का प्रावधान है, आज पृथ्वी पर्यावरण की रक्षा का दिन है, ना सरकारें गौर करती हैं और ना सामाजिक चेतना है यह दिवस मात्र औपचारिक है। मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा जिन्हें सुख भोगना है वे में व्यस्त है बगैर कुछ परवाह किए धरती का सीना छलनी कर रहे हैं खेत, खलिहान, नदी, तालाब, पहाड, वन, झरने, जीव, जंतु, पशु, पक्षी सब नष्ट हो रहे हैं कोरे वादे होंगे। कुछ ताकत दार समझते हैं कि हमने पेड़ काटे हैं यमराज हमारा क्या कर लेंगे समय बताएगा आज आप समर्थ हो सदैव नहीं रहोगे अमेरिका के गिलार्ड नेल्सन ने पृथ्वी दिवस का गठन किया था, कई देशों का समूह है इसकी शुरुआत जनवरी 1969 में कैलिफ़ोर्निया के तेल कुएं में खुदाई के दौरान आग लग गई थी जिसमें विस्फोट हुआ लाखों जीव जंतु समुद्र के किनारे नष्ट हो गए पर्यावरणविदो ने इसको लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य इस दिवस का गठन किया, धरती भोजन नहीं करती धरती जिंदा है, तो केवल पेड़ों के सहारे।
मेरे कुछ मित्र बगैर प्रचार-प्रसार के पुराने पेड़ों को बचाने में लगे हैं चित्रकूट के वैद्य डॉक्टर सचिन उपाध्याय कई वर्षों से पेड़ों पर शोध कर रहे हैं। महोबा के राजीव तिवारी जहां सैकड़ों वर्ष पुराना बरगद है पेड़ बचाने के लिए बरसों से जमीन पर काम कर रहे हैं। कालिंजर के अरविंद छिरौलिया आयुर्वेदिक पौधों को रोपण करते हैं। अरुण निगम राष्ट्रीय राजमार्ग के बीचो-बीच प्रतिवर्ष अपने संसाधन से वृक्षारोपण करते हैं सुधीर शर्मा अपने संसाधन से राष्ट्रीय कला केंद्र खजुराहो में अपने संसाधन से वृक्षारोपण करते हैं डॉक्टर शिव पूजन ऋषि कुल के माध्यम से पेड़ बचा रहे हैं कई कलमकार साथी अपनी कलम के माध्यम से पेड़ बचाने की कोशिश कर रहे हैं कई अधिकारी अपने पैसों से हजारों पर लगाते हैं कुछ लोग अभी जिंदा है ऐसे कई नाम है जो आदर्श हैं जमीन पर काम कर रहे हैं बगैर किसी प्रचार-प्रसार के अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए जिन गांव में पेड़ हैं वहां का जलस्तर आज भी ऊपर है जहां पर नहीं है वहां जल नहीं। जल ही जीवन है
इस अवसर पर पद्म विभूषण 97 वर्षीय सम्माननीय सुंदरलाल बहुगुणा जी को नमन करता हूं जिनके चिपको आंदोलन में उत्तरांचल के पेड़ बचा लिए दुनिया में पेड़ों के लिए आंदोलन चला कर दिखा दिया। जमीन पर क्या हम नरेनी से कालिंजर तक कटने वाले पुराने ₹2000 पेड़ों को हम बचा नहीं पाए बचा सकते थे कहां है वन कानून हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश हरित प्राधिकरण के आदेश क्या पेड़ काटने वालों ने क्यों नहीं माने एक आंदोलन बुंदेलखंड के पेड़ों को बचाने के लिए नहीं हो सकता राजनीति छोड़ कर चित्रकूट कालिंजर ओरछा खजुराहो पन्ना का नाम पेड़ों की वजह से पूरी दुनिया में है। हमको आवास चाहिए सुविधा चाहिए हमारे आस, पास के जीव,जंतु पशु, पक्षी पेड़, पौधों, को क्यों नहीं चाहिए निवास यदि कोई व्यक्ति किसी के मकान में 25 वर्ष तक निवास करता है तो नियम के अनुसार उस व्यक्ति को मकान से नहीं हटाया जा सकता लेकिन यह पेड़, महुआ, जामुन, बरगद, पीपल, सैकड़ों वर्ष से एक ही स्थान पर रह रहे हैं आखिर इन्हें क्यों बेदखल किया जाता है मैं भी मानता हूं रोड बनाने वह विकास के नाम पर, जो हमारे पुरखे हैं, पुरखों की लाशें रोड पर पड़ी हैं कोई सुन सके तो सुने यदि यह जानकारी सूचना ठीक लगे तो साझा करें कुछ गलती हो तो क्षमा करें। सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते मैंने जो देखा आपके साथ साझा कर रहा हूं। एक व्यक्ति जब मर कर परलोक, परमधाम जाता है तो वह अपने साथ एक पेड़ चिता के जलाने की रूप में साथ ले जाता है हमने सोचा है कि यह पेड़ कहां से आएगा। एक ना एक दिन सबको जाना है अंतिम समय एक पेड़ चाहिए चिता के लिए उसकी चिंता हो।