May 3, 2025

जखनी का मेड़बंदी अभियान जलग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि

  • उमाशंकर पांडेय


वर्षा की बूंदे जहां गिरे वही रोकें। भूदान यज्ञ आंदोलन के प्रणेता सर्वोदयी आचार्य विनोबा जी से हमें इस विधि की प्रेरणा मिली है।इस विधि से रुके जल से भूजल स्तर ही नहीं बढ़ता बल्कि लाखों खेत के जीव जंतु को पेड़ पौधों को पीने के लिए पानी मिलता है। खेत में नमी रहती है।

खेत से फसल लेने के लिए पुरखों की सबसे प्राचीन जल संरक्षण की विधि है जो परंपरागत के साथ सामुदायिक है। सुलभ है ,बगैर नवीन तकनीकी मशीन, शिक्षण, प्रशिक्षण, के कोई भी किसान नौजवान मजदूर खुद अपनी मेहनत से अपने खेत में इस विधि से जल संरक्षण कर सकता है। बगैर किसी की अनुमति के खेत में मेड़ , मेड़ पर पेड़ इस विधि को अब भारत में जलग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि के नाम से राज समाज सरकार जानती है।

जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार ने तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत नीति आयोग सरकार ने इस परंपरागत जल संरक्षण विधि को उपयुक्त माना महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना के अंतर्गत देशभर की ग्राम पंचायतों को आदेश दिया है कि वर्षा जल रोकने के लिए प्राथमिकता पर मेड़बंदी के माध्यम से मजदूरों को रोजगार दिया जाए । इस मद सर्वाधिक धनराशि भी ग्राम पंचायतों ने खर्च की है। इससे पूर्व 20 वर्षों में किसानों ने अपने श्रम ,अपनी मेहनत ,धन से लाखों एकड़ जमीन में मेड बंदी की है अभी कर भी रहे हैं लगातार फसल बोने का एरिया प्रतिवर्ष बढ़ रहा है मेड़बंदी के माध्यम से लगभग हर गांव में खासकर बुंदेलखंड में।सूखा प्रभावित किसी भी राज्य के किसी भी जिले के गांव के खेत में देखी जा सकती है। मेरी विधि को राज्य समाज सरकार ने सहर्ष स्वीकार किया है। मैंने 25 बरस संकल्प लिया था। खेत पर मेड़ , मेड़ पर पेड़ तब कुछ लोग गंभीरता से नहीं लेते थे। लेकिन अब प्रशिक्षण लेने आते हैं।
बगैर प्रचार-प्रसार के मेरी मेड़बंदी विधि 1 लाख 50,000 हजार गांव पहुंच गई। जिन गांव में कभी धान नहीं पैदा होता था उन गांव में बासमती धान पैदा हो रहा है। धान खरीद सेंटर बनाए गए हैं। धान बगैर मेड़बंदी के पानी के नहीं होता। केवल बांदा जिले में 20 लाख कुंतल से अधिक धान पैदा हुआ है चित्रकूट जिले में महोबा जिले में दतिया जिले में छतरपुर जिले में धान खरीद सेंटर बनाए गए हैं। सरकारी 2014 से 2020 के बीच के समय की उपज की जानकारी खुद की जा सकती है। बुंदेलखंड के गांव में पुरखों की सबसे पुरानी भूजल संरक्षण विधि मेड़बंदी है। जिस खेत में जितना अधिक पानी होगा खेत उतना अधिक उपजाऊ होगा। भूजल स्तर बढ़ता है फसलों को जलभराव एवं आभाव के कारण होने वाले नुकसान से बचाता है।


भूमि के कटाव के कारण मृदा के पोषक तत्व खेत से बह जाते हैं मेड बंदी के कारण मृदा कटाव रुक जाता है। जिससे पोषक तत्व खेत में ही बने रहते हैं। मेड़बंदी से एक ओर जहां भूमि को खराब होने से बचाया जाता है वही पशुओं को मेड़ से शुद्ध भोजन चारा प्राप्त होता है। मेड़बंदी को देश में विभिन्न नामों से जाना जाता है, मानक भी अलग-अलग है, कहीं 3 फीट चौड़ी 3 फीट ऊंची होती है अपनी सुविधानुसार खेत में बनाई जा सकती है। धान गेहूं की फसल तो केवल मेड़बंदी से रुके जल से ही होती है। हमारे पुरखे जल रोकने के लिए खेत पर मेड़ बनाते थे। मेड के ऊपर फलदार कम छायादार औषधि पेड़ लगाते थे। जिसमें बेल ,सहजन, सागौन , करौंदा अमरूद ,नीबू अनेकों वृक्ष जिनसे औषधि प्राप्त हो ,अतिरिक्त आमदनी भी हो, इमारती लकड़ी भी मिले ,आयुर्वेदिक, औषधियां हो फल हो ,जैविक खाद भी मिले, इनके पेड़ के पत्तों से मेड के ऊपर अरहर, मूंग ,और अलसी ,सरसों, ज्वार ,सन, जैसी फसलें पैदा होती है। जिन्हें पानी कम चाहिए उन फसलों को खेत की मेड़ पर पैदा किया जा सकता है । अतर्रा से ऐलान मार्ग बिसंडा से बबेरू मार्ग बांदा से अतर्रा मार्ग बांदा से तिंदवारी मार्ग किस सैकड़ों गांव में किसान अपने खेत की मेड पर अरहर दाल पैदा करते हैं। अपनी सुविधानुसार मेड़बंदी से उसर भूमि को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है बंजर भूमि में वृक्ष लगाकर हरा भरा किया जा सकता है। वर्षा जल को अधिक से अधिक मेड़बंदी के माध्यम से खेत में रोकना चाहिए। तमाम प्रकार के सिंचाई साधन होने के बावजूद भी हमारे देश की लाखों हेक्टर भूमि आज भी वर्षा जल पर निर्भर है। समुदाय के आधार पर जल संरक्षण की प्राचीन परंपरा हमारे देश में रही है। कुआ, तालाब, बांध ,बड़े-बड़े जलासे, बनाना रखरखाव करना अब सरकार के हाथ में हो गया है। पहले यह समाज के हाथों में थे तब जीवित थे अब कमजोर है ना के बराबर बचे हैं इनकी देखरेख ग्राम पंचायतें करती हैं सरकारी अनुदान मिलता है ।सरकार के नियम कानून लागू है लेकिन मेड़बंदी हम अपने खेत में खुद किसी भी समय कर सकते हैं बगैर अनुमति प्रशिक्षण के।


भू जल संरक्षण के लिए हमारी जल संरक्षण विधि किसी के लिए नहीं है अपने लिए है, अपने खेत के लिए है। केवल जल संरक्षण के लिए है गांव को खेतों को पानीदार बनाने के लिए है आज भले ही इसकी चर्चा संपूर्ण भारत में हो रही हो मुझे सम्मान मिल रहा है लेकिन यह विधि हमारे पुरखों की है प्रत्येक गांव में प्राचीन काल से रही है जो विलुप्त हो गई थी हमने पुनः जागृत किया है।

इसके लिए जन जागरण चलाया इसके फायदे बताएं हैं। जिन संस्थाओं ने, समूह ने, व्यक्ति विशेष ने, मुझे हमारी इस परंपरागत जल संरक्षण विधि के लिए उपयुक्त मानते हुए सम्मानित किया है बुलाया है उत्साह बढ़ाया है मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया है मेरी बातों पर विश्वास किया है मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं‌ जो सम्मान से बुलायेगा समय होने पर सहर्ष जाऊंगा। देश के किसानों नौजवानों मजदूरों सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं सामाजिक कार्यकर्ताओं जनप्रतिनिधियों वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का वैज्ञानिकों का ऋणी हूं। जिन्होंने ब्लॉक स्तर पर, जिला स्तर पर, प्रदेश स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर पर, मेरी जल संरक्षण विधि खेत पर मेड पेड़ पर पेड़ को मान्यता दी हमारा प्रयास जल संरक्षण के क्षेत्र में समुद्र में एक बूंद के बराबर है हमने बड़ा काम नहीं किया।



देश के कई प्रतिष्ठित घरानों ने मेरी जल संरक्षण विधि को समझने के लिए अपनी फैक्ट्री में परंपरागत जल संरक्षण के लिए मुझसे राय ली है मुझे बुलाया है मेरी बात मानी है मैं उनको भी धन्यवाद देता हूं जिन जिन राज्यों में मेरी जल संरक्षण की विधि से जल संरक्षण हो रहा है इसकी सूचना बाद में दूंगा अभी तो प्रारंभ है। मैं अपने उन मित्रों को धन्यवाद देता हूं जो मीडिया के क्षेत्र से जुड़े और इस मेरी परंपरागत भूजल संरक्षण विधि खेत के ऊपर मेड, मेड के ऊपर पेड़ को पूरे देश में अपनी लेखनी के माध्यम से जन जन तक पहुंचा रहे हैं लेख लिखे हैं प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरें प्रकाशित की है। आप मुझे सुझाव देते रहें मेरा मार्गदर्शन करते रहें बगैर मित्रों के सहयोग के काम पूरा नहीं हो सकता। मैं उनका भी आभार व्यक्त करता हूं जो एक कदम भी मेरे साथ जल संरक्षण की दिशा में मेरे रचनात्मक कार्यों में चले हैं। आपसे मिला अनमोल ज्ञान अनुभव मुझे काम आ रहा है।