
उ.प्र. के मुख्यमंत्री मा. योगी आदित्यनाथ जी ने हमारे परंपरागत भू जल संरक्षण अनुभव को सुना। इस अवसर पर जल शक्ति मंत्री मुख्य सचिव, अपर सचिव, मंडलायुक्त, जिलाधिकारी सहित प्रदेश के वर्षा जल वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, किसान मौजूद थे।
वेबीनार के माध्यम से भूजल सप्ताह का समापन अवसर था हमने बगैर किसी सरकारी अनुदान के समुदाय के आधार पर परंपरागत तरीके से वर्षा जल को खेतों में रोकने के लिए अपने पुरखों का जो स्थाई सफल मंत्र है खेत पर मेड, मेड पर पेड़, उसी का प्रयोग हम और हमारे किसान पिछले 20 वर्ष से कर रहे हैं। जखनी के किसानों ने अपने श्रम मेहनत संसाधन से यह प्रयोग किया प्रयोग सफल है पानी किसानी पलायन खुद अपनी मेहनत से रोक रहे हैं गांव में बासमती धान, गेहूं, सब्जी, फल, दूध, मत्स्य पालन, अपनी मेहनत से कर रहे हैं गांव को पानीदार बना रहे हैं। किसान नौजवान गांव का हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है अपने सीमित संसाधन से हमारा प्रयास तथा हमारे गांव का प्रयास भू जल संरक्षण की दिशा में समुद्र में एक बूंद के बराबर है लेकिन हमने अंधेरा अंधेरा कहने की बजाय एक छोटे से मिट्टी का दिया लेकर अपने संसाधन से पुरखों की विधि से थोड़ा ही सही उजाला करने की कोशिश की है जिन संस्थाओं का एनजीओ का अनुदान बजट करोड़ों में है उनके सामने हमारा प्रयास जुगनू के बराबर भी नहीं है।
शायद यह बड़े समाजसेवी लोग इस छोटे से प्रयास को कुछ नहीं मानते हो विदेशों से करोड़ों रुपए अनुदान लेने वाले को हमारा देसी प्रयास अच्छा नहीं लगेगा लगना भी नहीं चाहिए हमारी भूजल संरक्षण विधि किसान खुद अपने खेत पर मेड़बंदी करें किसी और से कराएं उसकी इच्छा पर है कौन सा पेड़ मेड पर लगाना है मेड आरह दाल पैदा करना है खुद किसान तय करता है।
खेत हमारे हैं, गांव हमारा है, तालाब हमारा है, परंपरागत कुआं नाले परंपरागत पेड़ सार्वजनिक गांव भर के हैं इन को बचाना सबकी जिम्मेदारी है गांव संपन्न हो परंपरागत उद्योग धंधे शुरू हो गांव आत्मनिर्भर हो बैंक से कम से कम कर्ज लिया जाए इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं हम कब सफल होंगे नहीं होंगे क्या होगा कौन अच्छा कहेगा कौन बुरा कहेगा कौन कमी निकालेगा कौन आलोचना करेगा कौन कब सम्मानित करेगा अपमानित करेगा उत्साहित, प्रोत्साहित करेगा विषय हमारा नहीं है सब ने मिलकर अपने गांव के विकास की योजना को प्रायोजित कर रखा है। हमने और हमारी जल ग्राम जखनी ने किसी से भू जल संरक्षण की दिशा में अपने प्रयासों के लिए ना तो अनुदान लिया है ना ही किसी प्रकार की कोई सहायता है मेरे नेतृत्व में जब तक कार्य होगा किसी भी प्रकार का कोई अनुदान आर्थिक सहायता इस विषय पर नहीं ली जाएगी। सरकार किस योजना, मनरेगा योजना, जिला प्रशासन राज्य सरकार अपनी-अपनी सरकारी एजेंसी के माध्यम से कौन-कौन कार्य कराते हैं गांव के विकास में करते हैं यह उनका विषय है राज्य समाज सरकार जब मिलकर कार्य करती है तभी सफलता मिलती है।
जिला प्रशासन बांदा ने 470 ग्राम पंचायतों में जखनी मॉडल लागू किया है राज्य सरकार भारत सरकार की जल शक्ति मंत्रालय ने संपूर्ण देश में एक नारा दिया है खेत पर मेड मेड पर पेड़ भू जल संरक्षण की दिशा में कितनी सफलता मिलती है मैं नहीं जानता हमारे प्रयोग को स्वीकार किया गया यह हमारे लिए गौरव की बात है मुझे खुशी है कि हमारे छोटे से प्रयास की सफलता की कहानी को देश के जल शक्ति मंत्री मा. गजेंद्र सिंह शेखावत जी ने जानने के लिए 16 जुलाई को हम से बात की, 18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री डॉ महेंद्र सिंह जी ने हमसे बात की, 22 जुलाई को उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने हमें तथा हमारे प्रयोग को बहुत गंभीरता से सुना इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार की जल शक्ति मंत्री डॉ महेंद्र सिंह जी, मुख्य सचिव मा राजेंद्र प्रसाद तिवारी, अपर मुख्य सचिव मा अवनीश अवस्थी जी, प्रमुख सचिव जल शक्ति माननीय अनुराग श्रीवास्तव जी सहित, उत्तर प्रदेश के भूजल वैज्ञानिक, विभिन्न जिलों के सामाजिक कार्यकर्ता किसान विभिन्न जिलों में जिला मुख्यालय पर मौजूद थे।
एनआईसी बांदा में मंडलायुक्त चित्रकूट धाम मंडल माननीय गौरव दयाल जी, जिलाधिकारी माननीय अमित सिंह बंसल जी, अपर जिलाधिकारी श्री संतोष बहादुर, मुख्य विकास अधिकारी श्री हरिश्चंद्र, जिला विकास अधिकारी के के पांडे, अधिशासी अभियंता लघु सिंचाई, अधीक्षण अभियंता भूजल उत्तर प्रदेश, मेरे गांव के कुछ किसानों को भी आमंत्रित किया गया था जिनमें अली मोहम्मद, राजा भैया वर्मा, निर्भय सिंह, अशोक अवस्थी, प्रेमचंद्र, कामता प्रजापति, मामून रशीद क्रय विक्रय समिति के चेयरमैन धर्मेंद्र त्रिपाठी, राम लखन द्विवेदी, सहित कई साथी वेबीनार के माध्यम से जुड़े मान्य मुख्यमंत्री जी को पूरे प्रदेश की एनआईसी के माध्यम से सुना गया। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि परंपरागत तरीके से अधिक से अधिक वर्षा बूंदों को जहां पर गिरे वहीं पर रोका जाए जल ही जीवन है जल है, तो कल है हर प्रकार से वर्षा जल को रोका जाए अधिक से अधिक हम उत्तर प्रदेश सरकार को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने हमें अवसर दिया है मैं उन सभी का आभार व्यक्त करता हूं जो मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं उन मित्रों का ऋणी हूं जो हमारे साथ खड़े हैं दुख सुख में आचार्य विनोवा के भूदान यज्ञ से प्रेरणा लेकर हम मेड़बंदी यज्ञ की ओर दो कदम समुदाय के साथ चलने की दिशा में तैयारी कर रहे है।
एक कोशिश चलो गांव की ओर गत वर्ष भारत सरकार के जल शक्ति सचिव यूपी सिंह जी ने जो पांच पेड़ जखनी में लगाए थे वे बड़े हो रहे हैं 25 अप्रैल 2005 को विज्ञान भवन में देश के चोटी के वैज्ञानिक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम से जो संदेश दिया भू जल संरक्षण का मंत्र लिया उसी को सिद्ध करने की कोशिश में लगे हैं 21 मई 2005 को उत्तर प्रदेश के राजस्व आयुक्त मा राकेश कुमार मित्तल जी ने जखनी गांव में पहला भू जल संरक्षण के लिए फावड़ा चला तालाब की शुरुआत की थी तथा 51 पेड़ लगाए थे तालाब के किनारे वे बड़े हो गए हैं। तत्कालीन मंडलायुक्त माननीय एल कटेश्वर लू जिला अधिकारी योगेश कुमार ने 31 मई 2015 को जो 11 पेड़ लगाए थे बे भी बड़े हो गए हैं। तत्कालीन जिलाधिकारी श्री हीरालाल जी, पुलिस अधीक्षक श्री गणेश शाह ने जो एक-एक पौधा लगाया था वह भी बड़ा होगा मुझे पूरा विश्वास है जिस किसी भी अधिकारी कर्मचारी जनप्रतिनिधि ने सामाजिक कार्यकर्ता मीडिया के साथी सोशल मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने मेरे गांव के प्रयास की सराहना की है मैं उन सब का ऋणी हूं प्रयास अकेले कभी नहीं सफल होते हजारों लोगों का श्रम सम्मिलित है।
22 साल की यात्रा में राज समाज सरकार तीनों मेरे साथ खड़े रहे जिम्मेदारी के साथ तभी तो यह विधि पूरे भारत में बगैर प्रचार-प्रसार के पहुंच गई खेत पर मेड, मेड पर पेड़ जखनी का मंत्र भू जल संरक्षण की दिशा में स्वीकार किया गया है संयोजक होने के नाते गलतियां भी हुई होंगी क्षमा प्रार्थी हूं मैं प्रार्थना करता हूं अपनों से जिस प्रकार आपने मेरा मेरे गांव का मार्गदर्शन किया है उसी प्रकार मुझे अपना आशीर्वाद देते रहें मेरा गांव एक दिन आत्मनिर्भर होगा स्वाबलंबी होगा पुरखों जैसा होगा पूर्वजों की इच्छा के अनुसार होगा हम रहे ना रहे युवा पीढ़ी हमारा सपना पूरा करेगी। मैं देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी का आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने मेड़बंदी के माध्यम से वर्षा भू जल संरक्षण के लिए संपूर्ण देश के प्रधानों को पत्र लिखा तथा परंपरागत जल संरक्षण विधि को महत्त्व दिया भू जल संरक्षण सरकार का नहीं समाज का विषय है देश में जब राजतंत्र था तालाब कुआं, जलाशय के लिए कोई अनुदान नहीं मिलता था देश के लाखों तालाब जीवित थे जलाशय जीवित थे या जीवित थे अनुदान के बाद भी परंपरागत जल स्रोत कम हो रहे हैं यह चिंता का विषय है।