
– महेंद्र वेद
नया वर्ष एक नई समस्या लेकर आया है, जो नेपाल से संबंधित है और जिसने भारतीय नीति निर्माताओं के लिए एक पुराने विवाद को उभार दिया है। उत्तर का यह पड़ोसी देश बेचैन है और चाहता है कि नई दिल्ली भारत-नेपाल-तिब्बत सीमा पर स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण एक छोटे से एन्क्लेव कालापानी के विवाद पर द्विपक्षीय विवाद के लिए समय-सारिणी तय करे।
भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य ने कहा है कि कालापानी नेपाल के क्षेत्र का हिस्सा है। सिर्फ सरकार ने ही नहीं, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी विवाद को सुलझाने के लिए नोटिस दिया है। इसके संकेत मजबूत हैं और नई दिल्ली इसकी अनदेखी नहीं कर सकती।आम तौर पर भारत और नेपाल के बीच रिश्ते सौहार्दपूर्ण रहे हैं, जिसे पारंपरिक रूप से रोटी-बेटी का रिश्ता कहा जाता है, लेकिन हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच तल्खी दो स्तरीय हो गई है। एक तो यही कि नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, जिसे काठमांडू में इस समय मौजूद वामपंथी सरकार उतनी ही गर्मजोशी और तत्परता के साथ गति दे रही है। यह नए ढंग से पुरानी समस्या का उभार है, जो दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि चीन पूरे दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। नई दिल्ली द्वारा विगत अगस्त में अप्रत्याशित ढंग से उठाए गए कदम के बाद, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को भंग करके उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया था, दूसरे स्तर पर नेपाल के साथ हमारा रिश्ता उलझ गया है। दरअसल विगत नवंबर में भारत का आधिकारिक मानचित्र जारी किया गया, जिसमें कालापानी को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा बताया गया है।
नेपाल ने इसका विरोध किया और अपने दावे को दोहराया। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार द्वारा कालापानी पर चर्चा करने और इस विवाद को निपटाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराने के बावजूद नेपाल की बेचैनी बढ़ी है। नेपाल के विभिन्न शहरों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए, हालांकि भारत के साथ जब कोई विवाद होता है, तो ऐसा होना वहां सामान्य बात है, फिर चीन के बढ़ते प्रभाव के साथ यह बढ़ रहा है।
अब भारत को निश्चित रूप से कदम उठाना चाहिए, या चिंता और कार्रवाई के दिखावे से ज्यादा काम करना चाहिए। यह कैसे होगा और इसका परिणाम क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी। काठमांडू की संवेदनशीलता को देखते हुए इस बात की संभावना है कि विदेश सचिव विजय गोखले, अथवा विदेश मंत्री एस जयशंकर नेपाल का दौरा करें और वहां के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के साथ बातचीत करें।
दरअसल यह पुराने मुद्दे का नए ढंग से उभार है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि भारत ने आक्रामक ढंग से मानचित्र तैयार किया है। यह स्थिति रवीश कुमार के जोर देकर ऐसा कहने के बावजूद है, कि ‘हमारे नक्शे में भारतीय क्षेत्र का सटीक चित्रण है। नए नक्शे में नेपाल के साथ हमारी सीमाओं को संशोधित नहीं किया गया है। नेपाल के साथ सीमा परिसीमन अभ्यास मौजूदा तंत्र के तहत चल रहा है। हम अपने करीबी और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों की भावना में बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।’
नेपाल ने लगातार दावा किया है कि कालापानी उसके सुदूर पश्चिमी धारचूला जिले का हिस्सा है। नेपाल और ब्रिटिश भारत के बीच 1815 में हुई सुगौली संधि के मुताबिक, कालापानी क्षेत्र से होकर बहने वाली महाकाली नदी को दोनों देशों के बीच की सीमा माना गया था। यह क्षेत्र चीन (तिब्बत) के साथ लगी भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण त्रिकोणीय जंक्शन के करीब है और इस क्षेत्र में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस तैनात है। बिहार के नरसाही-सुस्ता के पास भी एक और विवादित क्षेत्र था, जिसे सुलझा लिया गया।
अब नेपाल ने घोषणा की है कि वह कालापानी मुद्दे का हल तलाशने के लिए भारत के साथ बातचीत के लिए एक तारीख तय कर रहा है। नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने दावा किया कि नेपाल ने विगत 23 नवंबर को भारत को सीमा विवाद हल करने के लिए एक औपचारिक पत्र भेजा, जिसका जवाब देते हुए भारत ने इस मुद्दे को सुलझाने में रुचि दिखाई। उन्होंने कुशल कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा कि ‘यह कहना गलत है कि सीमा से जुड़ी समस्याओं के कारण भारत-नेपाल के संबंध खराब हुए हैं। भारत कूटनीतिक रास्ते से सीमा विवाद हल करने के लिए तैयार है।’
हालांकि दबाव बनाए रखते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री ने विगत 18 नवंबर को कहा था कि वह भारत को अपनी सेना हटाने के लिए कहेंगे और जोर दिया कि उसकी ‘देशभक्त सरकार’ किसी को भी उसके ‘एक इंच जमीन पर’ अतिक्रमण की अनुमति नहीं देगी। जब नेपाल के छात्रों ने भारत के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन किया, तो ओली ने एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व विदेश मंत्री भी शामिल थे। उसमें शामिल नेताओं और अन्य प्रतिभागियों ने उन्हें शीघ्र ही इस मुद्दे पर भारत के साथ बात करने के लिए कहा।
नेपाल का राजनीतिक वर्ग अशांत है, लेकिन आक्रामक नहीं है। 26 दिसंबर को नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने कहा कि सीमा विवाद को बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है। साथ ही उन्होंने रेखांकित किया कि काठमांडू नई दिल्ली के सुरक्षा हितों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। भारत और नेपाल, दोनों को एक दूसरे की चिंताओं को समझना चाहिए।
हालांकि चीन का नेपाल पर गहरा असर है और भारत तब इस पर कदम उठाने की स्थिति में आया है, जब काफी देर हो चुकी है। हाल के वर्षों में चीन ने नेपाल में भारी निवेश किया है और नेपाल के साथ उच्च स्तरीय बैठकें की हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल की यात्रा की और नेपाल के विकास कार्यक्रमों के लिए 56 अरब डॉलर की सहायता की घोषणा की। यह भारत द्वारा अब तक की गई मदद से ज्यादा है। चीन के पास काफी पैसा है और वह जिन परियोजनाओं का वादा करता है, उसे तेजी से पूरा करता है। ऐसे में यह व्यापक रूप से महसूस किया गया कि नेपाल की वामपंथी सरकार तेजी से चीन के करीब जा रही है। यह सब भारत के लिए एक चेतावनी है, जो राजनीतिक व कूटनीतिक रूप से कुशलतापूर्वक इन मुद्दों को निपटाने की मांग करती है।
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